Hinduism is the Only Dharma

Hinduism is the Only Dharma in this multiverse comprising of Science & Quantum Physics.

Josh Schrei helped me understand G-O-D (Generator-Operator-Destroyer) concept of the divine that is so pervasive in the Vedic tradition/experience. Quantum Theology by Diarmuid O'Murchu and Josh Schrei article compliments the spiritual implications of the new physics. Thanks so much Josh Schrei.

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Dhanyabad from Anil Kumar Mahajan
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Wednesday, November 3, 2010

Mohini/ LakshmiNarayan Ekadashi Vaisakh Shukla Paksh...... Apr - May

Mohini/ LakshmiNarayan Ekadashi
Vaisakh Shukla Paksh...... Apr - May



 
Yudhisthira replied: Janardhan ! Vaishakha month 's Shuklpaksha in which the name of the Ckadshi would do ? her what fruits would do ? that for which many methods have ?

Lord Krishna said: Dharmaraj ! anterior the ultimate intelligent Sriramacndraji the Maharishi Ashishtji the same thing asked was , that today you me asking were are .

Sriram said: Bhagavenr ! that all sins of the decay , and all kinds of sad :eyes of the prevention creator , Waratoan the best fast is , it I hear to do .

Ashishtji said: Ram ! you very good thing asked is . Man your name to the same all the sins from the pure to be used is . However, people 's interest to wish the I Pevitroan the sacred quality lent the description shall . Vaishakha month 's Shuklpaksha in the Ckadshi would have , his name ' Mohini ' is . that all the sins the Hernevali and Best 's . His vow to influence the human Mohajal and guilt group of rid get go is .

Saraswati river 's scenic coast on the Hdraoti name of the beautiful city 's . There Dhrtiman called King , the Chandravansh to generate and सत्यप्रतिज्ञ used , state when used . the same city at a merchant lived had , the money cereal from perfect and prosperity was . His name was Dhnepala . He always Punikerm the same thought keeps had . Others in the Peoslo ( Pyau ) , Kuan , monastery , garden , pond and the house built does did . Lord Vishnu 's devotion to his heartfelt affection was . He always quiet lives were . His five sons were : Sumn , Dhutiman , Mehovi , well-constructed and Dhrshtbuddhi . Dhrshtbuddhi fifth did . He always big - big sins in the attached remains were . gambling etc. Durrwysnoan in his great indulgence was . she prostitutes from the meeting of the desperate lives was . his intellect or the gods of worship in the look was and not families and the Brahmins of the hospitality in the . He demon injustice of the way to go dad 's money wasted was used did. One day the prostitute 's throat in the arm, put the square on the floating saw was . the father of her house to throw was and brothers Bandhavoan 's also her abandonment are given . Now that the day night pain and :b and grief in the dipped and misery on misery carries happened here, there wandering thought . One day, a virtue of the rise being from the Maharishi Kaundiny the Ashram to be accessed . Vaishakha the month was . Hpodhne Kaundiny Gangaji in the bath and came did . Dhrshtbuddhi lament the burden of suffering are Munivar Kaundiny the pass went and handed add front stand being said, : ' Brahman ! Dvijsresht ! me at the mercy and no such vow Tell me , whose virtue of the influence of my freedom is . "

Kaundiny said: Vaishakha the Shuklpaksha the ' siren ' name from the famous Ckadshi the fast up . " siren " the fast to the creatures of the many lifetimes to be the Meru mountain as the enormity too destroyed to be accepted if | '

Ashishtji says: Sriramacndraji ! Muni 's the word heard Dhrshtbuddhi the mind happy to be gone . He Kaundiny the teaching of precise ' siren Ckadshi ' a vow made . Nerpesresht ! the fast the make of the sinless are gone and the celestial body holds tax eagle on Ahrudh are all kinds of troubles from the free Shriavishnudham the run went . the kind that ' siren ' The fast so perfect is . the reading and listening to a thousand Ghodan the fruit gets is . "

मोहिनी एकादशी

युधिष्ठिर ने पूछा: जनार्दन ! वैशाख मास के शुक्लपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है? उसका क्या फल होता है? उसके लिए कौन सी विधि है?

भगवान श्रीकृष्ण बोले: धर्मराज ! पूर्वकाल में परम बुद्धिमान श्रीरामचन्द्रजी ने महर्षि वशिष्ठजी से यही बात पूछी थी, जिसे आज तुम मुझसे पूछ रहे हो ।

श्रीराम ने कहा: भगवन् ! जो समस्त पापों का क्षय तथा सब प्रकार के दु:खों का निवारण करनेवाला, व्रतों में उत्तम व्रत हो, उसे मैं सुनना चाहता हूँ ।

वशिष्ठजी बोले: श्रीराम ! तुमने बहुत उत्तम बात पूछी है । मनुष्य तुम्हारा नाम लेने से ही सब पापों से शुद्ध हो जाता है । तथापि लोगों के हित की इच्छा से मैं पवित्रों में पवित्र उत्तम व्रत का वर्णन करुँगा । वैशाख मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका नाम ‘मोहिनी’ है । वह सब पापों को हरनेवाली और उत्तम है । उसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य मोहजाल तथा पातक समूह से छुटकारा पा जाते हैं ।

सरस्वती नदी के रमणीय तट पर भद्रावती नाम की सुन्दर नगरी है । वहाँ धृतिमान नामक राजा, जो चन्द्रवंश में उत्पन्न और सत्यप्रतिज्ञ थे, राज्य करते थे । उसी नगर में एक वैश्य रहता था, जो धन धान्य से परिपूर्ण और समृद्धशाली था । उसका नाम था धनपाल । वह सदा पुण्यकर्म में ही लगा रहता था । दूसरों के लिए पौसला (प्याऊ), कुआँ, मठ, बगीचा, पोखरा और घर बनवाया करता था । भगवान विष्णु की भक्ति में उसका हार्दिक अनुराग था । वह सदा शान्त रहता था । उसके पाँच पुत्र थे : सुमना, धुतिमान, मेघावी, सुकृत तथा धृष्टबुद्धि । धृष्टबुद्धि पाँचवाँ था । वह सदा बड़े-बड़े पापों में ही संलग्न रहता था । जुए आदि दुर्व्यसनों में उसकी बड़ी आसक्ति थी । वह वेश्याओं से मिलने के लिए लालायित रहता था । उसकी बुद्धि न तो देवताओं के पूजन में लगती थी और न पितरों तथा ब्राह्मणों के सत्कार में । वह दुष्टात्मा अन्याय के मार्ग पर चलकर पिता का धन बरबाद किया करता था। एक दिन वह वेश्या के गले में बाँह डाले चौराहे पर घूमता देखा गया । तब पिता ने उसे घर से निकाल दिया तथा बन्धु बान्धवों ने भी उसका परित्याग कर दिया । अब वह दिन रात दु:ख और शोक में डूबा तथा कष्ट पर कष्ट उठाता हुआ इधर उधर भटकने लगा । एक दिन किसी पुण्य के उदय होने से वह महर्षि कौण्डिन्य के आश्रम पर जा पहुँचा । वैशाख का महीना था । तपोधन कौण्डिन्य गंगाजी में स्नान करके आये थे । धृष्टबुद्धि शोक के भार से पीड़ित हो मुनिवर कौण्डिन्य के पास गया और हाथ जोड़ सामने खड़ा होकर बोला : ‘ब्रह्मन् ! द्विजश्रेष्ठ ! मुझ पर दया करके कोई ऐसा व्रत बताइये, जिसके पुण्य के प्रभाव से मेरी मुक्ति हो ।’

कौण्डिन्य बोले: वैशाख के शुक्लपक्ष में ‘मोहिनी’ नाम से प्रसिद्ध एकादशी का व्रत करो । ‘मोहिनी’ को उपवास करने पर प्राणियों के अनेक जन्मों के किये हुए मेरु पर्वत जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं |’

वशिष्ठजी कहते है: श्रीरामचन्द्रजी ! मुनि का यह वचन सुनकर धृष्टबुद्धि का चित्त प्रसन्न हो गया । उसने कौण्डिन्य के उपदेश से विधिपूर्वक ‘मोहिनी एकादशी’ का व्रत किया । नृपश्रेष्ठ ! इस व्रत के करने से वह निष्पाप हो गया और दिव्य देह धारण कर गरुड़ पर आरुढ़ हो सब प्रकार के उपद्रवों से रहित श्रीविष्णुधाम को चला गया । इस प्रकार यह ‘मोहिनी’ का व्रत बहुत उत्तम है । इसके पढ़ने और सुनने से सहस्र गौदान का फल मिलता है ।’

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